हर दिन सोचती हूँ की, मैंने तुम्हे आज समझ लिया,
पर पता नहीं क्यु, आज से जादा कल तुम और उलछ जाते हो ll 
मुझे देखके चेहरे की हसी तो छुपा लेते हो, पर उन आँखों का
क्या? उसमें तो दिखा देते हो ll 
मेरी एक झलक से खुश तो जरुर होते हो, फिर अनदेखा करने का
नाटक क्यु करते हो ll 
मुझसे बात करने का मन तो बहोत होता है, फिर मुह फेरके अजनबी
जैसा व्यवहार क्यु करते हो ll 
कोई मुझे देखता रहे ये तुम्हे पसंद नहीं, फिर तुम ही क्यु
नहीं देखते जो इतना सताते हो ll 
तडफता है ये दिल, तुम्हारी एक मुस्कान के लिए, क्या उतना भी
हक़ नहीं है मेरा, जो इतनी बड़ी सजा देते हो ll 
कब तक ऐसे जीना होगा, कभी तो तुम्हे समझाना होगा, माना
प्यार है मेरा पर, तुम्हे भी दिखाना होगा ll 
भुल गयी हूँ मैं सारी हदे, अब और इंतजार नहीं होता, क्या
तुम्हारा दिल, मेरे लिए कभी तड़पता नहीं होगा ?