चाहत

 


क्यु ? आखिर क्यु बार बार मैं वही आ जाती हूँ ? जिसको कदर नहीं उसी पर रुक जाती हूँ ll 

रोती हूँ दिल में पर, उसको कोई गम नहीं ll 

तड़पती हूँ हर दिन पर, उसको कोई रेहम नहीं ll   

उसकी एक झलक के लिए पता नहीं क्या क्या बहाने बनती हूँ, पर उसको कोई अहसास ही नहीं ll 

अब खुद को रोकना चाहती हूँ, इस तकलीफ से छुटना चाहती हूँ ll 

तू आये या ना आये मुझको कोई परवाह नहीं क्युकी, अब मैं खुद के लिए जीना चाहती हूँ ll 

Share:

इंतजार

 

हर दिन सोचती हूँ की, मैंने तुम्हे आज समझ लिया,

पर पता नहीं क्यु, आज से जादा कल तुम और उलछ जाते हो ll 

मुझे देखके चेहरे की हसी तो छुपा लेते हो, पर उन आँखों का क्या? उसमें तो दिखा देते हो ll 

मेरी एक झलक से खुश तो जरुर होते हो, फिर अनदेखा करने का नाटक क्यु करते हो ll 

मुझसे बात करने का मन तो बहोत होता है, फिर मुह फेरके अजनबी जैसा व्यवहार क्यु करते हो ll 

कोई मुझे देखता रहे ये तुम्हे पसंद नहीं, फिर तुम ही क्यु नहीं देखते जो इतना सताते हो ll 

तडफता है ये दिल, तुम्हारी एक मुस्कान के लिए, क्या उतना भी हक़ नहीं है मेरा, जो इतनी बड़ी सजा देते हो ll 

कब तक ऐसे जीना होगा, कभी तो तुम्हे समझाना होगा, माना प्यार है मेरा पर, तुम्हे भी दिखाना होगा ll 

भुल गयी हूँ मैं सारी हदे, अब और इंतजार नहीं होता, क्या तुम्हारा दिल, मेरे लिए कभी तड़पता नहीं होगा ? 

Share: